▪️पृष्ठा संख्या (65 - 72)
✏️ कबीरदास
• साईं : प्रभु, ईश्वर, स्वामी।
• तुज्झ : तुझ।
• पुहुपन : पुष्प, फूल।
• बास : सुगंध, खुशबू।
• कस्तूरी : एक प्रकार का हिरन जो ठंडे पर्वतीय
भागों में रहता है, इसकी नाभि से
कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ निकलता
है - जो दवा के काम में आता है।
• मिरग : मृग, हिरन।
• सिष : शिष्य, चेला।
• खोट : कमी, दोष, त्रुटि।
• चोट : आघात, प्रहार, मार।
• पोथी : धर्म - ग्रंथ।
• कर का : हाथ का।
• मनका : माला के दाने।
• मोल करो : मूल्य जान लो।
• मिलिया : मिला।
• आपना : अपना।
• बौरा : पागल।
• मसान : शमशान।
• परलय : प्रलय, सृष्टि का नाश।
• बहुरि : फिर, पुनः।
• करेगो : करोगे।
• फिर - फिर : बार बार, पुनः पुनः।
• अनँत : जिसका अंत न हो, जो समाप्त न हो;
अनादि- अनंत परम, ब्रह्म, आराध्य प्रभु।
• काढ़ै : निकालते हैं, दूर करते हैं।
• बाहै : चलाते हैं।
• मुआ : मर गया।
• मन का फेर : मन के अपवित्र भाव चिंताएँ, सोच
आदि।
• डारि दे : डाल दे, फेंक दे।
• म्यान : तलवार, कटार आदि रखने का खाना।
• कोय : कोई भी, एक भी।
• पैठ : डूबकी लगाकर।
• घट : घड़ा, शरीर रूपी घड़ा।
• साखी : साक्षी, ज्ञान संबंधी दोहे।
• दोहा : हिंदी का एक प्रसिद्ध छंद, जिसके विषम
(पहले और तीसरे) चरणों में तेरह - तेरह
और सम (दुसरे और चौथे) चरणों में ग्यारह
ग्यारह मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक
दल में चौबीस मात्राएँ होती हैं। अंत में लघु
होना अनिवार्य है।
• उपगार : उपकार, भलाई।
• लोचन : आँख, नयन, नेत्र।
2 Comments